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चिंताएं अब मुझें सताने लगी ।

चिंताएं अब मुझे सताने लगी..। रोज नये ख्बाब दिखाने लगी , लगने लगा है अब मुझें जो डर  पता नही कब चढ़ा दे अपना ज्वर का रंग  । चिंताएं अब मुझें सताने लगी..। अब रोज जो ख्वाबो में डराने लगी , कल से आज का सम्बंध बताने लगी ।  समझ बैठा हूं मैं अब इन्हें अपने  ख्वाबो  की दहशत का रूप । पता नही अब ये क्यों मुझें डराने लगी । रोज रोज का किस्सा अब आने लगा ख्वाबो में , अबचेतन मन भी जो भाने लगा रातों में ! अब ये चिंताएं मुझें सताने लगी..। रात को अब मुझें रुलाने लगी , सुबह की चिंताएं भी बढ़ाने लगी..। दिन में भी एहसास कराने लगी , अब  तो मानों की सच्चाई के रुझान भी आने लगें । फिर मुझे सुबह में अपने जाल में फंसाने लगी । पता नहीं क्यों यह कर रही है मेरे साथ ऐसा ,  मानो जैसे लगा मुझें क्यों बैठा हूं उदास जैसा , मैं अपने मन को अत्यंत दुखी लगाने लगा । अब चिंताएं मुझे सताने लगी..। मेरी उदासी का आलम अंदर ही अंदर टूट - टूट कर मुझें खाने लगा । अब रात के पहर का साया मुझें सताने लगा , क्यों मैं अब.. दिन को रात भी समझने लगा ! दिन के पहर में भी अंधेरा मुझे सताने लगा । रात को ही क्यों.? ख्वाबो का मंजर  आने लगे । नई नई तस
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लॉकडाउन मे सिसकता जीवन

इस समय भारत ही नही पुरे विश्व मे कोरोना वायरस ने आतंक फैलाया हुआ है यहाँ तक कि इस वायरस के चलते भारत मे लोक डाउन जारी है और हम परिवार मे घर पर सुरक्षित बंद है वैसे ये सबसे सुरक्षित जगह मानी जाती है । पर इंसानियत फितरते कहा, जहाँ पर कुछ करने के लिए बाध्य किया । कई बन्धन महसूस होने लगे है । मुश्किल वक़्त है जाहिर सी बात… मानवता को इस वायरस ने बहुत प्रभावित किया अगर समग्र रूप से देखा जाएं तो वर्तमान मे कोरोना वायरस ने डर , ख़ौफ़ , उदासी , गम , चिढ़ गुस्सा आदि जैसा माहौल  कर दिया जहाँ मानवता आतंकित नजर आ रही । परंतु इंसान ने इंसान की जिंदगी को खत्म कर दिया । यह अतीत वर्तमान मुझे चिंता करने पर मजबूर कर रहा । ये इंसान को इंसान से  मिलने नही दे रहा । ये मानवता का कौन सा रूप धारण हो रहा जिसमे अकेला पन महसूस हो रहा। ये ही कि मनुष्य ही मनुष्य के जीवन को मिटाने की चेष्टा में लीन हो रहा इस वायरस ने दुनिया को एक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया है जहाँ मेरी तरह हर छोटे-बड़े इंसानो में ख़ौफ़ नजर आ रहा । वायरस की चपेट से मनुष्य मृत्यु के तांडव को पा रहा । इस महाकाय विशाल राक्षस को पराजित करना की दिशा निर्

इस शहर में मजदूर जैसा दर-बदर कोई नहीं।

हा मैं.. भी मजदूर हूँ.. जिसने अपनी सारी उम्र दे दी दूसरों के महल बनाने में आज उन्हीं के पास रहने के लिए महल नहीं है।  जिसने कड़ी मेहनत किया की उसे आराम मिले और आज उसी के पास एक पल का आराम नहीं।  जिसने पूरी जिंदगी दे दी उनको अमीर बनाने में  आज भी वहीं गरीबी में ही जी रहा है । जिसने जिंदगी का हर वो हिस्सा कर दिया कुर्बान। उन पूंजीपतियों के घर परिवार को संवारने में  आज भी वहीं तड़प रहा है अपने घर परिवार के लिए। जिसने अपने मालिकों का भूख मिटिया और आंसू पोछा आज वही भूखा है और खून के आंसू रो रहा है। हां, साहब उन्हीं मजदूरों कि बात कर रहा हूं उन्हीं मजदूरों कि दशा बता रहा हूं। हां, मैं भी मजदूर हूँ।

हर गरीब चीखकर दे रहा है आवाज़ सबको कोई नहीं सुन रहा है उसकी आवाज़ आखिर कौन सुने उसकी आवाज़ । सियासत पर बैठे लोग झूठ का पर्दा डालके बैठा है। कोई नहीं सुन रहा है उसकी आवाज़ क्योंकि आखिर वह गरीब है । वो गरीब भूख से रो रहा है कोई नहीं सुन रहा है उसकी आवाज आखिर कौन सुने उसकी आवाज जमींदार अपनी ही शान में बैठा है । कुछ दरिंदा उसे मार रहे है, पीट रहे है उल्टे कानून के रखवाले है बोल रहे है यही पापी है , यही दरिंदा है । क्यों सुने उसकी आवाज क्योंकि आखिर वह गरीब है गरीब बीमारी से तड़प रहा है और कह रहे हैं डाक्टर साहब तुम्हारे पास पैसा नहीं है यहां से चले जाओ और करता भी क्या वह बेचारा सरकारी अस्पताल के फर्श पे ही तड़पकर दम तोड़ दिया क्योंकि आखिर वह गरीब था ।

हर गरीब चीखकर दे रहा है आवाज़ सबको कोई नहीं सुन रहा है उसकी आवाज़ आखिर कौन सुने उसकी आवाज़ । सियासत पर बैठे लोग झूठ का पर्दा डालके बैठा है। कोई नहीं सुन रहा है उसकी आवाज़ क्योंकि आखिर वह गरीब है । वो गरीब भूख से रो रहा है कोई नहीं सुन रहा है उसकी आवाज आखिर कौन सुने उसकी आवाज जमींदार अपनी ही शान में बैठा है । कुछ दरिंदा उसे मार रहे है, पीट रहे है उल्टे कानून के रखवाले है बोल रहे है यही पापी है , यही दरिंदा है । क्यों सुने उसकी आवाज क्योंकि आखिर वह गरीब है गरीब बीमारी से तड़प रहा है और कह रहे हैं डाक्टर साहब तुम्हारे पास पैसा नहीं है यहां से चले जाओ और करता भी क्या वह बेचारा सरकारी अस्पताल के फर्श पे ही तड़पकर दम तोड़ दिया क्योंकि आखिर वह गरीब था । ✍️ विरेंद्र सिंह डोबरा

कई दर्द थे जीवन मे पहले ही पर कोरोना ने सब को पीछे छोड़ दिया ।

"संकट की इस घड़ी में ..हम दे साथ एक दूसरों का ,निभा फर्ज मानवता का.." अक्सर ऐसा कहा जाता है कि संकट घड़ी में ही मानवता पुष्पित और पल्लवित होती है. इसका जीवंत और ज्वलंत उदाहरण हम अभी 'कोरोना वायरस' नामक राक्षस के हाहाकार से देख रहे हैं. पूरे विश्व की मानवता को इस राक्षस ने  प्रभावित कर दिया है 'विश्व मानवता 'खतरे में पड़ गई है .ना कोई अमीर खतरे में ,है ना कोई गरीब खतरे में है किसी विशिष्ट जाति, समाज, समूह वर्ग का व्यक्ति खतरे में है बल्कि समग्र रूप से यदि देखा जाए वर्तमान समय में कोरोना ने डर आतंक ,और खौफ का माहौल निर्माण कर दिया है. मनुष्यता का इतिहास साक्षी है इस विश्व पटल पर  युद्ध  स्थितियों से मनुष्यता का संहार हुआ है मनुष्य जाति का जितना गौरव मय ही उतना ही कलंकित भी है .'जीवन का अंतिम और शाश्वत सत्य मृत्यु है 'यह हम सभी को पता है, परंतु इंसान ने इंसान की जिंदगी को खत्म कर दिया. यह अतीत , वर्तमान हमें चिंता करने पर मजबूर कर देता है.. अब यह वायरस मनुष्य ही मनुष्य के जीवन को मिटाने की चेष्टा में लीन है .स्वार्थी, असंवेदनशील, निर्मम तथा मशीन बनता ज