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चिंताएं अब मुझें सताने लगी ।

चिंताएं अब मुझे सताने लगी..।
रोज नये ख्बाब दिखाने लगी ,
लगने लगा है अब मुझें जो डर 
पता नही कब चढ़ा दे अपना ज्वर का रंग  ।
चिंताएं अब मुझें सताने लगी..।
अब रोज जो ख्वाबो में डराने लगी ,
कल से आज का सम्बंध बताने लगी । 
समझ बैठा हूं मैं अब इन्हें अपने  ख्वाबो 
की दहशत का रूप ।
पता नही अब ये क्यों मुझें डराने लगी ।
रोज रोज का किस्सा अब आने लगा ख्वाबो में ,
अबचेतन मन भी जो भाने लगा रातों में !
अब ये चिंताएं मुझें सताने लगी..।
रात को अब मुझें रुलाने लगी ,
सुबह की चिंताएं भी बढ़ाने लगी..।
दिन में भी एहसास कराने लगी ,
अब  तो मानों की सच्चाई के रुझान भी आने लगें ।
फिर मुझे सुबह में अपने जाल में फंसाने लगी ।
पता नहीं क्यों यह कर रही है मेरे साथ ऐसा , 
मानो जैसे लगा मुझें क्यों बैठा हूं उदास जैसा ,
मैं अपने मन को अत्यंत दुखी लगाने लगा ।
अब चिंताएं मुझे सताने लगी..।
मेरी उदासी का आलम अंदर ही अंदर
टूट - टूट कर मुझें खाने लगा ।
अब रात के पहर का साया मुझें सताने लगा ,
क्यों मैं अब.. दिन को रात भी समझने लगा !
दिन के पहर में भी अंधेरा मुझे सताने लगा ।
रात को ही क्यों.? ख्वाबो का मंजर  आने लगे ।
नई नई तस्वीरों ने मुझे जकड़ रखा ।
अंदर ही अंदर मुझे खाने लगी , 
चिंताएं मुझे सताने लगी..।
आपने अनुभव ✍️ वीरेंद्र सिंह 

Comments

Priyash_01 said…
Waaaaah meriii jaaann
Bhut hi khoobsurat likha h
Bilkul aisa... Jo feel ho jaye
Sabdon ki aawaz sidhe dil tak jaye
Keep creating positive vibes... Keep going ahead 👌👍
Shukriya meriii jaaan�� Anubhav ke Shor Bar Bar shabdon ke chuppi to Sunai de rahe ।