इस समय भारत ही नही पुरे विश्व मे कोरोना वायरस ने आतंक फैलाया हुआ है यहाँ तक कि इस वायरस के चलते भारत मे लोक डाउन जारी है और हम परिवार मे घर पर सुरक्षित बंद है वैसे ये सबसे सुरक्षित जगह मानी जाती है । पर इंसानियत फितरते कहा, जहाँ पर कुछ करने के लिए बाध्य किया । कई बन्धन महसूस होने लगे है । मुश्किल वक़्त है जाहिर सी बात… मानवता को इस वायरस ने बहुत प्रभावित किया अगर समग्र रूप से देखा जाएं तो वर्तमान मे कोरोना वायरस ने डर , ख़ौफ़ , उदासी , गम , चिढ़ गुस्सा आदि जैसा माहौल कर दिया जहाँ मानवता आतंकित नजर आ रही । परंतु इंसान ने इंसान की जिंदगी को खत्म कर दिया । यह अतीत वर्तमान मुझे चिंता करने पर मजबूर कर रहा । ये इंसान को इंसान से मिलने नही दे रहा ।
ये मानवता का कौन सा रूप धारण हो रहा जिसमे अकेला पन महसूस हो रहा। ये ही कि मनुष्य ही मनुष्य के जीवन को मिटाने की चेष्टा में लीन हो रहा इस वायरस ने दुनिया को एक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया है जहाँ मेरी तरह हर छोटे-बड़े इंसानो में ख़ौफ़ नजर आ रहा । वायरस की चपेट से मनुष्य मृत्यु के तांडव को पा रहा । इस महाकाय विशाल राक्षस को पराजित करना की दिशा निर्देशो का बोध हमें सुनाएं जा रहे , मैं तो शासन, प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग के निर्देशो का पालन का रहा । वही दूसरी और मुझे उन लोगों की चिंता भी सताई जो इस मुश्किल घड़ी के दौरान अपने अपने घरों से दूर दराज दूरियों मे फँसे हुए होंगे क्या बीत रही होगी या वो भी मैरी तरह बेबस, हताश , उदास होंगे । पता नही पर वो दुःखी बहुत होंगे अपने घर के आवागमन को लेकर , सफर में न जानें किस समय के समय से गुजरे होंगे। पर वो भी बिन संसाधन के अपने घर की और हजारों मील पैदल कैसे चले होंगे । मैं समझता हूँ इन राहगिरो को जो बेबस बिन खाएं पीये अपने घर की दौड़ में कैसे भूख से बिलखते हुएं होंगे । बच्चे , बूढ़े नंगे पांव चलते हुए अपने घर की और सर पर बोझ लाधे हुऐ होंगे । बहुत दूर जा रहे होंगे । और लौंहपथ गामिनी की पटरियों पर रोटी के लिए नींद में चूर भी हुए होंगे सफर में चलकर भूखे प्यासे थक कर चकना चूर भी हुएं होंगे। मैं समझ सकता हूँ आखिर वो मजदूर ही हुएं होंगे । इनके हिस्से की रोटियां खाकर वो अमीर आराम फरमा रहे होगे। और ये यहाँ पथ पर ही बेचारे भूखे प्यासे दुर्घटना में अपनी कैसे जान भी गवां रहें । मैने देखा वही दूसरी तरफ जहां अमीरों की यात्रा के लिए हवाई जहाज और गरीबो के लिए सिर्फ पैदल सेर । ये कैसा मंजर है कोरोना वायरस का जिसने गरीबी और अमीरी का रूप दिखा दिया । मैने देखा है बहुत नजदीक से इन सभी पहलुओं को क्योकि मैं भी चला था इसी पथ पर , जो बहुत असमंजस था । मैं झुग्गी झोपड़ पट्टी का चरण था मै भी भोजा ढोने वालों का उच्चारण बना हुआ था आँसुओ के अग्निगन्धा जैसा सम्बोधन , भूख प्यासे जैसा उद्बोधन । संवादों के उधारण जैसा नवीन मण्डी का एक श्रमिक उच्चारण का एक उधारण जो बना। हा इस लॉक डाउन में इतना तो तय हो गया कि हमें पुलिस प्रशासन के सामने आना का कोई शौक नही रहा । क्योकि अपने परिवार को छोड़कर अपने खुले पन के लिए रास्तो पे घूमने का कोई अवहेलना नही समझ । और जहाँ प्रशासन के प्रति सम्मान की भाबना पैदा हो गयी । यह क्षण बहुत ही अजीब था क्योकि हम कोरोना से डरे हुएं हड़बड़ाये हुएं थे हम जानते है की इसका इलाज है सोशल डिस्टेंसिंग जिससे दूरिया बनी रहे। पास आने से इंसान मर रहा है , ओर हम ये क्यों नही देख रहे । की इसकी चपेट में जो आ रहे , वो ठीक भी तो हो रहे हैं । ना.. इसका मतलब ये की यदि हम मृतकों की संख्या पर ध्यान ना देकर.. ठीक होने वालों को देखे तो हम शून्य से 2 लाख तक को पार कर चुके । तो हम कोरोना की चपेट में आएं 50 प्रतिशत को मात भी दे चुके ना... और बाकी 50 प्रतिशत के लिए हमारे जन रक्षक डॉक्टर्स , प्रशासन , सफाई कर्मी भी तो लड़ रहे है। जब हम किसी और बीमारी से भी पीड़ित होते तो medicine सिर्फ 20 प्रतिशत काम करती । बाकी हम ठीक तो mind power , सकारात्मकता से होते ।जब हम सकारात्मक होते है तो रोग से लड़ने के लिए हमारी प्रतिरोधक शक्ति काम आती है जहाँ उस रोग को नष्ट कर देती है और रोग को बाहर निकल देती है। और दूसरी और सरकारी की नीतियां बड़ी चुनौती पूर्ण जहाँ सभी जोनों की कर दी हद पार। जहाँ विद्यालय पर लटका दिया ताला । सरकारों को खूब भाति: धन बरसाती मधुशाला , जहाँ सोशल डिस्टेंसिंग की ऐसी तैसी हो चुुकि ,लाकडाउन को धो डाला । भक्तों के व्याकुल हृदयों पर रस बरसाती ये पहनी सेनेटाइजर की मधुशाला । जहाँ बन्द हो रहें रोजमर्रा की जरूरतें , पर उस समय सरकार ने खुलवा दी मधुशाला , इस लाइलाज़ महामारी में नशा मुक्त हो जाता भारत भी , इस लोक डाउन बाले समय मे व्यवसाय रुका है उन गरीबों का , जो श्रम को पाना चाहते । पर वो सड़को पर बेबस और पलायन की और । पर नही मिल रहा राशन पानी , मगर बटेगी इन्हें मधुशाला की रानी भाड़ में जाएं जनता बेचारी , दर्द में है पीने वाला। सरकार कर रही कमाई सारी । ऐसे कैसा होगा कोराना मुक्त भारत , अब पूछे कोन इनसे..? जब स्वयं को बचाने मे लगे दूरिया । जब ठेके पर चले थे त्रिशूल और भाला , सरकार बंद करा रही ये घर का ताला । दुनिया है ।बरबाद और इन्हे चाहिए मधुशाला । घर में ही रह लो इंसानो , बची रहेंगी फितरत साला , इस विकट घडी का सामने ढटकर कर ले प्यारे , लगी रहेेेगी इसमें हाजरी तेरी प्यारे ।
📝 वीरेंद्र सिंह
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