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हर गरीब चीखकर दे रहा है आवाज़ सबको कोई नहीं सुन रहा है उसकी आवाज़ आखिर कौन सुने उसकी आवाज़ । सियासत पर बैठे लोग झूठ का पर्दा डालके बैठा है। कोई नहीं सुन रहा है उसकी आवाज़ क्योंकि आखिर वह गरीब है । वो गरीब भूख से रो रहा है कोई नहीं सुन रहा है उसकी आवाज आखिर कौन सुने उसकी आवाज जमींदार अपनी ही शान में बैठा है । कुछ दरिंदा उसे मार रहे है, पीट रहे है उल्टे कानून के रखवाले है बोल रहे है यही पापी है , यही दरिंदा है । क्यों सुने उसकी आवाज क्योंकि आखिर वह गरीब है गरीब बीमारी से तड़प रहा है और कह रहे हैं डाक्टर साहब तुम्हारे पास पैसा नहीं है यहां से चले जाओ और करता भी क्या वह बेचारा सरकारी अस्पताल के फर्श पे ही तड़पकर दम तोड़ दिया क्योंकि आखिर वह गरीब था ।

हर गरीब चीखकर दे रहा है आवाज़ सबको
कोई नहीं सुन रहा है उसकी आवाज़
आखिर कौन सुने उसकी आवाज़ ।
सियासत पर बैठे लोग
झूठ का पर्दा डालके बैठा है।
कोई नहीं सुन रहा है उसकी आवाज़
क्योंकि आखिर वह गरीब है ।
वो गरीब भूख से रो रहा है
कोई नहीं सुन रहा है उसकी आवाज
आखिर कौन सुने उसकी आवाज
जमींदार अपनी ही शान में बैठा है ।
कुछ दरिंदा उसे मार रहे है, पीट रहे है
उल्टे कानून के रखवाले है बोल रहे है
यही पापी है , यही दरिंदा है ।
क्यों सुने उसकी आवाज
क्योंकि आखिर वह गरीब है
गरीब बीमारी से तड़प रहा है
और कह रहे हैं डाक्टर साहब
तुम्हारे पास पैसा नहीं है
यहां से चले जाओ
और करता भी क्या वह बेचारा
सरकारी अस्पताल के फर्श पे ही
तड़पकर दम तोड़ दिया
क्योंकि आखिर वह गरीब था ।
✍️ विरेंद्र सिंह डोबरा

Comments

Priyash_01 said…
बेहद उम्दा������
बहुत ही अच्छा लिखा है मेरी जान
ऐसा... जैसा कोई सोच भी ना सके।
लगे रहो��
दिली शुक्रिया भाई जान