Skip to main content

इस शहर में मजदूर जैसा दर-बदर कोई नहीं।

हा मैं.. भी मजदूर हूँ..
जिसने अपनी सारी उम्र दे दी दूसरों के महल बनाने में
आज उन्हीं के पास रहने के लिए महल नहीं है। 
जिसने कड़ी मेहनत किया की उसे आराम मिले
और आज उसी के पास एक पल का आराम नहीं। 
जिसने पूरी जिंदगी दे दी उनको अमीर बनाने में 
आज भी वहीं गरीबी में ही जी रहा है ।
जिसने जिंदगी का हर वो हिस्सा कर दिया कुर्बान।
उन पूंजीपतियों के घर परिवार को संवारने में 
आज भी वहीं तड़प रहा है अपने घर परिवार के लिए।
जिसने अपने मालिकों का भूख मिटिया और आंसू पोछा
आज वही भूखा है और खून के आंसू रो रहा है।
हां, साहब उन्हीं मजदूरों कि बात कर रहा हूं
उन्हीं मजदूरों कि दशा बता रहा हूं।
हां, मैं भी मजदूर हूँ।

Comments