Skip to main content

Posts

Showing posts from April, 2020

हर गरीब चीखकर दे रहा है आवाज़ सबको कोई नहीं सुन रहा है उसकी आवाज़ आखिर कौन सुने उसकी आवाज़ । सियासत पर बैठे लोग झूठ का पर्दा डालके बैठा है। कोई नहीं सुन रहा है उसकी आवाज़ क्योंकि आखिर वह गरीब है । वो गरीब भूख से रो रहा है कोई नहीं सुन रहा है उसकी आवाज आखिर कौन सुने उसकी आवाज जमींदार अपनी ही शान में बैठा है । कुछ दरिंदा उसे मार रहे है, पीट रहे है उल्टे कानून के रखवाले है बोल रहे है यही पापी है , यही दरिंदा है । क्यों सुने उसकी आवाज क्योंकि आखिर वह गरीब है गरीब बीमारी से तड़प रहा है और कह रहे हैं डाक्टर साहब तुम्हारे पास पैसा नहीं है यहां से चले जाओ और करता भी क्या वह बेचारा सरकारी अस्पताल के फर्श पे ही तड़पकर दम तोड़ दिया क्योंकि आखिर वह गरीब था ।

हर गरीब चीखकर दे रहा है आवाज़ सबको कोई नहीं सुन रहा है उसकी आवाज़ आखिर कौन सुने उसकी आवाज़ । सियासत पर बैठे लोग झूठ का पर्दा डालके बैठा है। कोई नहीं सुन रहा है उसकी आवाज़ क्योंकि आखिर वह गरीब है । वो गरीब भूख से रो रहा है कोई नहीं सुन रहा है उसकी आवाज आखिर कौन सुने उसकी आवाज जमींदार अपनी ही शान में बैठा है । कुछ दरिंदा उसे मार रहे है, पीट रहे है उल्टे कानून के रखवाले है बोल रहे है यही पापी है , यही दरिंदा है । क्यों सुने उसकी आवाज क्योंकि आखिर वह गरीब है गरीब बीमारी से तड़प रहा है और कह रहे हैं डाक्टर साहब तुम्हारे पास पैसा नहीं है यहां से चले जाओ और करता भी क्या वह बेचारा सरकारी अस्पताल के फर्श पे ही तड़पकर दम तोड़ दिया क्योंकि आखिर वह गरीब था । ✍️ विरेंद्र सिंह डोबरा

कई दर्द थे जीवन मे पहले ही पर कोरोना ने सब को पीछे छोड़ दिया ।

"संकट की इस घड़ी में ..हम दे साथ एक दूसरों का ,निभा फर्ज मानवता का.." अक्सर ऐसा कहा जाता है कि संकट घड़ी में ही मानवता पुष्पित और पल्लवित होती है. इसका जीवंत और ज्वलंत उदाहरण हम अभी 'कोरोना वायरस' नामक राक्षस के हाहाकार से देख रहे हैं. पूरे विश्व की मानवता को इस राक्षस ने  प्रभावित कर दिया है 'विश्व मानवता 'खतरे में पड़ गई है .ना कोई अमीर खतरे में ,है ना कोई गरीब खतरे में है किसी विशिष्ट जाति, समाज, समूह वर्ग का व्यक्ति खतरे में है बल्कि समग्र रूप से यदि देखा जाए वर्तमान समय में कोरोना ने डर आतंक ,और खौफ का माहौल निर्माण कर दिया है. मनुष्यता का इतिहास साक्षी है इस विश्व पटल पर  युद्ध  स्थितियों से मनुष्यता का संहार हुआ है मनुष्य जाति का जितना गौरव मय ही उतना ही कलंकित भी है .'जीवन का अंतिम और शाश्वत सत्य मृत्यु है 'यह हम सभी को पता है, परंतु इंसान ने इंसान की जिंदगी को खत्म कर दिया. यह अतीत , वर्तमान हमें चिंता करने पर मजबूर कर देता है.. अब यह वायरस मनुष्य ही मनुष्य के जीवन को मिटाने की चेष्टा में लीन है .स्वार्थी, असंवेदनशील, निर्मम तथा मशीन बनता ज...