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Showing posts from July, 2020

चिंताएं अब मुझें सताने लगी ।

चिंताएं अब मुझे सताने लगी..। रोज नये ख्बाब दिखाने लगी , लगने लगा है अब मुझें जो डर  पता नही कब चढ़ा दे अपना ज्वर का रंग  । चिंताएं अब मुझें सताने लगी..। अब रोज जो ख्वाबो में डराने लगी , कल से आज का सम्बंध बताने लगी ।  समझ बैठा हूं मैं अब इन्हें अपने  ख्वाबो  की दहशत का रूप । पता नही अब ये क्यों मुझें डराने लगी । रोज रोज का किस्सा अब आने लगा ख्वाबो में , अबचेतन मन भी जो भाने लगा रातों में ! अब ये चिंताएं मुझें सताने लगी..। रात को अब मुझें रुलाने लगी , सुबह की चिंताएं भी बढ़ाने लगी..। दिन में भी एहसास कराने लगी , अब  तो मानों की सच्चाई के रुझान भी आने लगें । फिर मुझे सुबह में अपने जाल में फंसाने लगी । पता नहीं क्यों यह कर रही है मेरे साथ ऐसा ,  मानो जैसे लगा मुझें क्यों बैठा हूं उदास जैसा , मैं अपने मन को अत्यंत दुखी लगाने लगा । अब चिंताएं मुझे सताने लगी..। मेरी उदासी का आलम अंदर ही अंदर टूट - टूट कर मुझें खाने लगा । अब रात के पहर का साया मुझें सताने लगा , क्यों मैं अब.. दिन को रात भी समझने लगा ! दिन के पहर में भी अंधेरा मुझे सताने लगा । रात को ही क्यों.? ...